गुरु कृपा के कण
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सद्गुरु व
परमात्मा की कृपा से ऐसे क्षण अवश्य आते है जब उसका मन सात्विकता, पवित्रता,
शांति, श्रद्धा व भक्ति से पूर्ण होकर परमात्मा में एकाग्र हों जाता है | वे क्षण,
यह समय, यह अवसर जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है | सबसे कीमती क्षण होते है वे
जब वह सद्गुरु की कृपा की शीतल छाया में होता है, परमात्मा के निकट होता है |
सद्गुरु
के आशीर्वाद से उसे साधना में,ध्यान में, भक्ति में, रस आने लगता है तथा वह प्रगति
भि करने लगता है | किंतु इस समय में उसके लिए अत्यंत आवश्यक है कि वह इसके महत्व
को समझे, इन क्षणों को सहेजे, उनके मूल्य को समझे | जो आनंद, शांति, प्रेम उसे
अनुभव हों, उसे अपने प्रयासों का फल नहीं अपितु सद्गुरु की कृपा का प्रसाद समझे |
मनुष्य का स्वभाव है कि जीवन में जो कुछ उसे
प्राप्त हो जाता है, सहजता से मिल जाता है, वह उसका मूल्य नहीं समझता, उस समय उसकी
कद्र नहीं करता | किंतु जब वह उससे वंचित हों जाता है तो उसे बोध होता है कि उसे
क्या प्राप्त हुआ था | तब उसे उस प्राप्ति का वास्तविक मूल्य पता चलता है | जीवन
की प्रत्येक उपलब्धि एवं प्रत्येक प्राप्ति के लिए यह सत्य है | फिर चाहे वह धन
हो, मान-प्रतिष्ठा हों, संबधियों व मित्रों का प्रेम हों अथवा आध्यात्मिक सम्पदा
हों | परमात्मा प्रत्येक मनुष्य के जीवन में स्वर्णिम अवसर प्रदान करते है जब उसे
सुख प्राप्ति के साधन सरलतापूर्वक प्राप्त होने लगते है |उस समय विशेष में, उस
अवसर की महत्ता को समझते हुए जो व्यक्ति उसका पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए उद्यत
हो उठता है, वह अपने सौभाग्य को जाग्रत कर लेता है | किंतु अज्ञानवश, अविद्यावश,
आलस्यवश जो इन अवसरों को खो देता है, वह भविष्य में केवल और केवल पश्चाताप ही करता
रह जाता है | उस समय वह उन अवसरों का मूल्य नहीं समझता किंतु जब अवसर हाथ से चला
जाता है तब वह होश में आता है कि क्या खो गया | कितना अमूल्य समय खो गया | इसके
लिए आवश्यक है कि मनुष्य प्रतिपल सचेत एवं सतर्क रहें, ईश्वर के प्रति कृतज्ञता से
उसका रोम रोम पूर्ण हो तथा ह्रदय में विनम्रता, पवित्रता तथा प्रेम हो | ईश्वर तो
सभी को अवसर देते है | जो उसका महत्व समझकर, सदुपयोग करते हुए ईश्वर के प्रति आभार
अभिव्यक्त करता है, उसे उतरोत्तर और अधिक अवसर ईश्वर की ओर से प्राप्त होते चले
जाते है | इसके विपरीत जो व्यक्ति इन अवसरों का मूल्य नहीं समझता, इसकी कद्र नहीं
करता, उसके लिए भविष्य में भी अवसर प्राप्ति का द्वार अवरुद्ध हो जाता है |
अत: यह अत्यंत आवश्यक है कि जीवन में जो कुछ
हमे प्राप्त हुआ, हम उसकी महत्ता को समझे तथा उसके लिए आभारी हों | ईश्वर से
योग्यता के लिए प्रार्थना करे कि हम उसे सभाँल सकें | हमारे भीतर अहंकार न आए |
विशेषकर जब सद्गुरु व
परमात्मा की कृपा से साधना व भक्ति में मन स्थिर होने लगे तब तो हमे सर्वाधिक सचेत
व सावधान होना चाहिए क्योंकि साधना व श्रेष्ठता का अहंकार व्यक्ति को पतन की ओर ले
जाता है | वह अपने बारे में गलत धारणा बना लेता है कि वह बहुत उच्च कोटि का साधक
एवं भक्त है | उस समय वह भ्रमित हो जाता है तथा भूल जाता है कि साधना में उसकी
स्थिरता उसके प्रयासों का फल नहीं अपितु सद्गुरु की कृपा का फल है | भ्रम की इस
अवस्था में व्यक्ति स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानने लगता है तथा परिणाम स्वरूप
उसका अहंकार बढता चला जाता है |
साधना की अनुभूतियाँ, भक्ति व पूजा से
प्राप्त शांति, प्रेम व आनंद जो उसे सद्गुरु की कृपा से प्राप्त होता है उस अमूल्य
सम्पदा के महत्व को वह पहचान नहीं पाता ओर क्रमशः जीवन में आगे बदते-बदते जब माया
के प्रभाव में आकर उसकी साधना, भक्ति, जप-तप छूट जाता है तब उसे होश आता है कि
उसके मन की वास्तविकता क्या है और जो प्राप्त हुआ था वह कितना ही अमूल्य था |
जिसकी उसने कद्र नहीं की किंतु तब तक बहुत देरी हों चुकी होती थी |
फिर उसे प्रथम चरण से यात्रा प्रारम्भ करनी
पड़ती है, साधना की मात्रा, मन को पवित्र करने की यात्रा | और जब तक सद्गुरु
करुणावश उसका हाथ थाम कर उसे राह न दिखाएँ, वह भटकता रह जाता है | अत: जीवन में जब
भी सद्गुरु की कृपा से साधना में स्थिरता प्राप्त हों, बहुत सतर्क, सचेत व सावधान
हों जाना चाहिए |
यह साधारण नहीं, असाधारण प्राप्ति होती है |
उसके मूल्य को समझे, विनम्र व निरहंकार होकर सद्गुरु की शरण में आकर पूर्ण समर्पण
कर देना, मात्र यही जीवन की सार्थकता है |
🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 घ्यान गुरू अर्चना दीदी के श्री चरणों मे सादर प्रणाम।।🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏🌷🙏🏻🌹🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏 🌷🙏 🙏 🌷
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