स्वर्णिम अवसर
कल्पना कीजिये एक नवजात
शिशु की जो एक राजकुमार के रूप में भव्य राजमहल में प्रथम श्वास लेता है | पिछले
जन्मों के कर्मो एवं पुण्यों के फलस्वरूप इस जीवात्मा को राजप्रसाद में जन्म मिला,
राजकुमार के ऐश्वर्य भोग, सुख सुविधाओं का साम्राज्य प्राप्त हुआ | महारानी की
गोद, वात्सल्य, प्रेम एवं महाराजा का स्नेह व संरक्षण प्राप्त हुआ |
जन्म के साथ ही
दास-दासियों, ऐश्वर्य, रेशमी व बहुमूल्य वस्त्राभूषण, स्वर्ण शैया, भांति-भांति के
स्वादिष्ट भोजन व खाद्य पदार्थ – जीवन के सभी सुख प्राप्त हुए | मन में इच्छा होते
ही मनचाही वस्तु प्राप्त होती है | संसार का ऐसा कोई सुख नहीं जिससे वंचित होने की
संभावना हों | ग्रीष्म ऋतु में शीतल मंद बयार, शीतल खाद्य व पेय पदार्थो की
व्यवस्था तथा शीत ऋतु में ऊष्ण आरामदायक वातावरण, मनोरंजन के सभी साधन, धन-धान्य,
सुरक्षित भविष्य – सभी कुछ वह भाग्य में लिखा कर लाया है |
किंतु सभी को तो ऐसा
सौभाग्य नहीं मिलता | पिछले जन्मों के शुभ कर्मो का ही तो परिणाम होता है जब
व्यक्ति को ऐसा भाग्य मिले, ऐसा जीवन मिले |
हम में से बहुत से लोगों को
पिछले जन्मों के शुभ कर्मो के फलस्वरूप ऐसा ही सुखद जीवन व अनुकूल परिस्थितियाँ
प्राप्त होती है | ऐसी स्थिति में व्यक्ति को ईश्वर के प्रति, सद्गुरु के प्रति
अत्यंत कृतज्ञ होकर समय व अवसर का लाभ प्राप्त कर, ध्यान साधना, आध्यात्मिक उन्नति
व समाज सेवा के लिए अपनी ऊर्जा व समय का सदुपयोग करना चाहिये | शुभ कर्म करते हुए
और अधिक पुण्य अर्जित करने चाहिए ताकि वह आगे आने वाले जन्मों को सुधार सके |
स्मरण रहना चाहिए कि इस
जन्म में जो अनुकूलता, जो सुख, जो कृपाएं प्राप्त हुई है, वह पिछले जन्मों की शुभ
कमाई का सुफल है | जिस प्रकार अर्जित संपति समय के साथ प्रयोग करते-करते एक दिन
समाप्त हों जाती है, उसी प्रकार पिछले जन्मों के शुभ कर्मो की कमाई भी कुछ समय तक
साथ देती है, भावी जीवन के लिए और अधिक पुण्य अर्जन की आवश्यकता होती है, और अधिक
तपस्या की आवश्यकता होती है |
सद्गुरु की कृपा से जब
व्यक्ति को यह बोध हो जाता है तो वह जीवन में मिले सौभाग्य का, ईश्वर की कृपाओं का
दुरपयोग नहीं करता, आलस्य, स्वार्थ, अकर्मण्यता, अहंकार के दलदल में नहीं फँसता |
वह इस जीवन में भी सौभाग्य का उपयोग करता है तथा सेवा, कर्मठता, परिश्रम, साधना,
प्रेम व परोपकार द्वारा भावी जीवन को भी सँवारने का प्रयास करता है |
इसके विपरीत जो व्यक्ति
इसका मूल्य नहीं समझता वह इस जीवन में तो सुख प्राप्त कर लेता है | पिछले जन्मों
के शुभ कर्मो के फलस्वरूप उसका जीवन अत्यंत सहज, सुखी, सुख सुविधाओं व ईश्वर की
कृपा से पूर्ण होता है | किंतु आलस्य, प्रमाद, अकर्मण्यता, स्वार्थ एवं विषय उपयोग
के वशीभूत वह अगले जन्मों के लिए कुछ पुण्य अर्जित नहीं कर पाता | माया का आकर्षण
उसे नीचे की ओर खींचता है |
उसकी स्थिति ठीक उसी प्रकार
राजकुमार की भांति है जिसे सौभाग्यवश जन्म से राजमहल में मिला किंतु राजकुमार के
गौरवशाली पद के दायित्वों व कर्तव्यों के लिए स्वंय को योग्य नहीं बना पाया |
ऐश्वर्य-भोग विलास में ही फँसकर वह आलसी प्रमादी हो गया, भाग्य ने उसे सभी
अनुकूलताएं प्रदान की परन्तु कर्म से उसने
उसे प्रतिकूलता में परिवर्तित कर दिया |
राजा फिर ऐसे पुत्र को
राज्य संचालन का कार्यभार कैसे सौंप सकता है ? राजकुमार से राजा बनने के लिए
अपेक्षित गुण तथा योग्यता को अर्जित करना भी तो आवश्यक है, उसके लिए पर्याप्त
परिश्रम, अभ्यास,कर्मठता सभी आवश्यक है | निंद्रा, क्षुधा, ऐश्वर्य, विषय उपभोग
सभी पर नियत्रंण आवश्यक है | अपनी ऊर्जा एवं समय का दिशा देना आवश्यक होता है,
उसमें शत-प्रतिशत प्रयास व लग्न आवश्यक होता है | किंतु राजकुमार ने ऐसा कुछ भी
नहीं किया | परिणाम स्वरूप राजा ने उसे राजगद्दी के योग्य न समझ कर राजपद से वंचित
कर दिया |
ऐसे राजकुमार से बढ़कर,
दुर्भाग्यशाली संसार में कौन होगा | यह दुर्भाग्यशाली राजकुमार कोई ओर नहीं, हम
स्वयं है | ईश्वर ने हमे समस्त सुख उपयोग, ऐश्वर्य, संम्भावनाएं देकर धरती पर भेजा
| यदि मनुष्य को जीवन में सद्गुरु का सानिध्य, कृपाएं व मार्गदर्शन प्राप्त हों
जाए तथा वह ध्यान साधना के माध्यम से इन सम्भावनाओं एवं क्षमताओं को जागृत कर ले
तो चमत्कार घटित हो सकता है |
आवश्यकता है तो मानव देह के
रूप में मिले इस अवसर के सदुपयोग की, इस अवसर की दुर्लभता एवं मूल्य को समझने
की,सद्गुरु की कृपाएं प्राप्त करने की तथा ध्यान की यात्रा में अग्रसर होने की |
अत: जाग जाइये, जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग कीजिये, होश में आ जाइए |
No comments:
Post a Comment